विपरीत लिंगी को अनुकूल करने एवं आकर्षण शक्ति बढ़ाने का मंत्र

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प्रस्तावना:

“ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती ह्री सा। बलादाकृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति” यह श्लोक देवी भगवती का आराधना करने वालों के लिए एक प्रमुख मंत्र है जो महामाया की आशीर्वाद को प्राप्त करने का पथ प्रशस्त करता है। इस मंत्र में व्यक्त की अज्ञानता को दूर करने और भगवती की कृपा को आकर्षित करने का अर्थ होता है। इस विशेष श्लोक के पीछे छुपी गहराईयों को समझने के लिए हम इसे 1500 शब्दों में विस्तार से समझेंगे।

मंत्र का विश्लेषण:

“ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती ह्री सा। बलादाकृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति” यह मंत्र वेद में उपस्थित शक्ति, ज्ञान, और माया की प्रतिनिधि हैं। “ॐ” का प्रयोग ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के रूप में ब्रह्माण्ड के सृष्टिकर्ता, संरक्षक, और संहारक की पूजा के लिए किया जाता है। इस मंत्र की शक्ति से सजग और उत्साही भक्त अपनी आत्मा की प्राप्ति की दिशा में कार्य करता है।

आकर्षण एक ऐसी चीज है जो हर मनुष्य चाहता है , हर किसी की ये इच्छा होती है की वो हर कार्य में अपना अच्छा योगदान दे और उसको उसके कार्य के लिए प्रोत्साहन मिले और उसको अपने कार्य में सफलता प्राप्त हो , इसके लिए हम आपको एक बहुत ही शक्तिशाली महामंत्र बताने जा रहे है , श्री दुर्गा सप्तसती में वर्णित एक मंत्र है , इसको आप 11 या 108(एक माला ) बार पड़े आपको इसका बहुत अच्छा और चमत्कारी प्रभाव देखने को जरूर मिलेगा ये बड़ा सरल एवं सटीक उपाय है। मा‍ता दुर्गा का मंत्र जो निम्नलिखित है

इस मंत्र का प्रयोग करने के लिए सबसे पहले भक्तों को ध्यान में ले जाने के लिए एक शांत और प्रशिक्षित स्थान का चयन करना चाहिए। आत्म-साधना के लिए एक धार्मिक वातावरण बनाना बहुत उपयुक्त होता है। इसके बाद निम्नलिखित चरणों का पालन करें:

  1. आचमन:
    • सबसे पहले, आचमन करें और अपने शरीर को पवित्र करें। इससे आत्म-साक्षात्कार में सहारा मिलता है।
  2. मंत्र का जप:
    • फिर, मंत्र का जप शुरू करें। मन्त्र को ध्यान से, श्रद्धा भाव से और स्पष्ट उच्चारण के साथ जपें।
  3. ध्यान:
    • मंत्र के जप के दौरान, देवी भगवती ह्री का ध्यान करें। उनके चित्र को मन में स्थापित करें और उनकी आदिशक्ति में लीन हो जाएं।
  4. पूजा और आराधना:
    • मंत्र के जप के साथ, देवी की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं और पुष्प चढ़ाएं। आरती करें और उन्हें अपनी शक्ति से मोहने के लिए प्रार्थना करें।
  5. ध्यानाभ्यास:
    • मंत्र के जप के बाद, ध्यान धरें और मानसिक शांति में समाहित होकर आत्मा के साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर हों।

‘ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती ह्री सा।

बलादाकृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति।।’

मंत्र का भावार्थ:

“ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती ह्री सा। बलादाकृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति” का भावार्थ यह है कि जब भक्त अपने मन में अज्ञान और मोह को दूर करने के लिए माँ भगवती की आराधना करता है, तो महामाया उसके जीवन को बल से भर देती है और उसे आत्मा की ओर खिचने में मदद करती है। यह मंत्र ज्ञान की देवी, सर्वशक्तिमान, और माया की रानी माँ भगवती की उपासना का एक विशेष तरीका है।

मंत्र के विस्तार से विवेचन:

  1. “ॐ” का महत्व:
    • “ॐ” एक शक्तिशाली ब्रह्मास्त्र है जो ब्रह्मा, विष्णु, और शिव की पूजा में प्रयुक्त होता है। इसका उच्चारण मन को शांति और ध्यान में ले जाता है और आत्मा के साथ मिलाता है।
  2. “ज्ञानिनामपि चेतांसि” – अज्ञान का नाश:
    • यह भाग कहता है कि माँ भगवती अपने भक्तों को अज्ञान से मुक्ति प्रदान करती है और उनके मन को ज्ञान से भर देती है।
  3. “देवी भगवती ह्री सा” – सर्वशक्तिमान माँ:
    • यहाँ “ह्री” शक्ति और सौंदर्य का प्रतीक है, जिससे भक्त माँ की आशीर्वाद में समर्थ होता है।
  4. “बलादाकृष्य मोहाय” – आत्मा को आकर्षित करना:
    • इस भाग में भक्त माँ से आत्मा की आकर्षण शक्ति में वृद्धि की प्रार्थना करता है, जिससे उसे मोह और आत्मा से दूर नहीं किया जा सकता है।
  5. “महामाया प्रयच्छति” – माँ की कृपा:
    • इस अंतिम भाग में यह कहा जाता है कि महामाया, भगवती की आशीर्वाद से ही संभव है। माँ की कृपा से ही भक्त अपने मन को आत्मा की दिशा में ले जा सकता है।

मंत्र का उपयोग और लाभ:

  1. आत्मा का ज्ञान:
    • मंत्र का नियमित जप करने से भक्त अपने आत्मा के अद्वितीयता को समझने में सफल होता है और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  2. आत्मा की ओर आकर्षण:
    • माँ के इस मंत्र के जप से भक्त अपनी आत्मा को और आकर्षित महसूस करता है और वह आत्मा की दिशा में अधिक जुटा रहता है।
  3. मोह और अज्ञान का नाश:
    • मंत्र का उच्चारण करने से भक्त का मोह और अज्ञान दूर होता है और उसे वास्तविक ज्ञान का अनुभव होता है।
  4. सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव:
    • इस मंत्र के प्रभाव से भक्त को सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है जो उसे जीवन में उत्साही और सकारात्मक बनाता है।
  5. भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि:
    • इसका जप करने से भक्ति और श्रद्धा में वृद्धि होती है जो आत्मिक उन्नति में मदद कर सकती है।
  6. माया और आकर्षण को जानने में सहायक:
    • यह मंत्र देवी के साक्षात्कार में मदद करके आकर्षण शक्ति को समझने में सहायक है।
  7. शांति और सकारात्मकता:
    • इसका नियमित जप करने से शांति और सकारात्मकता में वृद्धि होती है, जिससे जीवन में समर्थ्य बढ़ता है।
  8. आत्मा के प्रति आकर्षण:
    • मंत्र का जप करने से आत्मा के प्रति आकर्षण बढ़ सकता है, जो आत्मिक सामर्थ्य को बढ़ावा देता है।

भगवती देवी का वर्णन:

भगवती देवी, जिन्हें भगवान विष्णु की शक्ति के रूप में जाना जाता है, हमारे पुराणों और शास्त्रों में उच्च स्थान रखती हैं। वे शक्ति की प्रतीक हैं और सृष्टि के रक्षक और संरक्षक हैं। भगवती देवी के विभिन्न रूपों में उनकी अद्वितीय शक्तियों का विस्तार किया गया है, जिनमें मां दुर्गा, मां काली, मां लक्ष्मी, और मां सरस्वती शामिल हैं। भगवती देवी को सृष्टि, स्थिति और संहार की त्रिमूर्ति के रूप में भी जाना जाता है।

भगवती देवी की शक्तियाँ:

  1. ज्ञान और बुद्धि की शक्ति:
    • भगवती देवी ज्ञान की देवी हैं और उनकी शक्ति विचारों को प्रेरित कर, ज्ञान की ओर प्रेरित करती है।
    • उन्हें संसार के ज्ञान का स्रोत माना जाता है और उनके आदेशों का पालन करने से जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
  2. क्षमता और शक्ति:
    • भगवती देवी की शक्ति अपरिमित है। उन्हें सर्वशक्तिमान माना जाता है, जो समस्त ब्रह्मांड की रचना, संरक्षण और संहार करती हैं।
    • उनकी शक्ति से भक्त अपने जीवन में अद्वितीय क्षमताओं को प्राप्त कर सकते हैं और सभी प्रकार के बुराईयों से निपट सकते हैं।
  3. माया और लीला:
    • भगवती देवी की माया अद्वितीय है और उनकी लीलाएं अद्वितीय होती हैं।

समाप्ति:

“ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती ह्री सा। बलादाकृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति” यह मंत्र भक्ति और आत्मा के साथ संबंधित है, जो व्यक्ति को आत्मा की प्राप्ति और अनुभव में मदद करता है। इसका नियमित उच्चारण करने से भक्त अपने जीवन को ज्ञान, सकारात्मकता, और माँ की कृपा से सजग बना सकता है। यह श्लोक भक्त को अपने उद्देश्यों और आत्मा की ऊँचाइयों की ओर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाने में मदद करता है और उसे सच्चे स्वरूप में जागरूक करता है। इस मंत्र के माध्यम से, भक्त अपने जीवन को मानवीयता, उद्दीपन, और अद्वितीयता की ओर मोड़ सकता है, जो उसे आत्मा के साथ अद्वितीयता में मिलाता है।

 

इस मंत्र के प्रयोग में उच्चारण में सावधानी आवश्यक है। किसी भी ग्रंथों तथा उत्तम उच्चस्तरीय विद्वान से मार्गदर्शन ले कर इसको नित्य प्रारंभ में संकल्प जरूर लें। अंत में बलि-कर्म (सात्विक) जरूर करें तभी फल की संभावना प्रवल और उत्तम बनेगी।

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